We would like to cover some most famous Bhagwat Geeta Shlok and also the meaning of shlokas in Hindi. The Gita is set in a narrative structure of a conversation between Arjuna and his guide and charioteer Krishna.At the start of the Dharma Yudhha between Pandavas and Kauravas, Arjuna is filled with moral dilemma and despair about the violence and death the war will cause in the clash against his own relatives. Krishna is also said to be the first motivational speaker in human history.

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GEETA SHLOK WITH MEANING IN HINDI

(अध्याय चार, श्लोक 7)

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥

 

इस श्लोक का अर्थ है: हे (अर्जुन), जब-जब धर्म ग्लानि यानी उसका लोप होता है और अधर्म में वृद्धि होती है, तब-तब मैं (श्रीकृष्ण) धर्म के अभ्युत्थान के लिए स्वयम् की रचना करता हूं अर्थात अवतार लेता हूं।

 

(अध्याय चार, श्लोक 8)

परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्।

धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे॥

 

इस श्लोक का अर्थ है: सज्जन पुरुषों के कल्याण के लिए और दुष्कर्मियों के विनाश के लिए और धर्म की स्थापना के लिए मैं (श्रीकृष्ण) युगों-युगों से प्रत्येक युग में जन्म लेता आया हूं।

 

(अध्याय तीन, श्लोक 21)

यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:।

स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥

 

इस श्लोक का अर्थ है: श्रेष्ठ पुरुष जो-जो आचरण यानी जो-जो काम करते हैं, दूसरे मनुष्य (आम इंसान) भी वैसा ही आचरण, वैसा ही काम करते हैं। वह (श्रेष्ठ पुरुष) जो प्रमाण या उदाहरण प्रस्तुत करता है, समस्त मानव-समुदाय उसी का अनुसरण करने लग जाते हैं।

 

(अध्याय दो, श्लोक 23)

नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: ।

न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत ॥

 

इस श्लोक का अर्थ है: आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न आग उसे जला सकती है। न पानी उसे भिगो सकता है, न हवा उसे सुखा सकती है। (यहां भगवान श्रीकृष्ण ने आत्मा के अजर-अमर और शाश्वत होने की बात की है।

 

(अध्याय दो, श्लोक 37)

हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम्, जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम्।

तस्मात् उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय:॥

 

इस श्लोक का अर्थ है: यदि तुम (अर्जुन) युद्ध में वीरगति को प्राप्त होते हो तो तुम्हें स्वर्ग मिलेगा और यदि विजयी होते हो तो धरती का सुख को भोगोगे, इसलिए उठो, हे कौन्तेय (अर्जुन), और निश्चय करके युद्ध करो। (यहां भगवान श्रीकृष्ण ने वर्तमान कर्म के परिणाम की चर्चा की है, तात्पर्य यह कि वर्तमान कर्म से श्रेयस्कर और कुछ नहीं है।

 

(अध्याय चार, श्लोक 39)

श्रद्धावान्ल्लभते ज्ञानं तत्पर: संयतेन्द्रिय:।

ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥

 

इस श्लोक का अर्थ है: श्रद्धा रखने वाले मनुष्य, अपनी इन्द्रियों पर संयम रखने वाले मनुष्य, साधनपारायण हो अपनी तत्परता से ज्ञान प्राप्त कते हैं, फिर ज्ञान मिल जाने पर जल्द ही परम-शान्ति (भगवत्प्राप्तिरूप परम शान्ति) को प्राप्त होते हैं।

 

(अध्याय दो, श्लोक 47)

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

इस श्लोक का अर्थ है: कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, लेकिन कर्म के फलों में कभी नहीं, इसलिए कर्म को फल के लिए मत करो और न ही काम करने में तुम्हारी आसक्ति हो। (यह श्रीमद्भवद्गीता के सर्वाधिक महत्वपूर्ण श्लोकों में से एक है, जो कर्मयोग दर्शन का मूल आधार है।

(अध्याय दो, श्लोक 62)

ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।

सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥


इस श्लोक का अर्थ है: विषयों (वस्तुओं) के बारे में सोचते रहने से मनुष्य को उनसे आसक्ति हो जाती है। इससे उनमें कामना यानी इच्छा पैदा होती है और कामनाओं में विघ्न आने से क्रोध की उत्पत्ति होती है। (यहां भगवान श्रीकृष्ण ने विषयासक्ति के दुष्परिणाम के बारे में बताया है।

(अध्याय दो, श्लोक 63)

क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:।

स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥

इस श्लोक का अर्थ है: क्रोध से मनुष्य की मति मारी जाती है यानी मूढ़ हो जाती है जिससे स्मृति भ्रमित हो जाती है। स्मृति-भ्रम हो जाने से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि का नाश हो जाने पर मनुष्य खुद अपना ही का नाश कर बैठता है।

(अध्याय अठारह, श्लोक 66)

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।

अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच:॥

इस श्लोक का अर्थ है: (हे अर्जुन) सभी धर्मों को त्याग कर अर्थात हर आश्रय को त्याग कर केवल मेरी शरण में आओ, मैं (श्रीकृष्ण) तुम्हें सभी पापों से मुक्ति दिला दूंगा, इसलिए शोक मत करो।

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GEETA SHLOK WITH MEANING IN ENGLISH

(अध्याय चार, श्लोक 7)

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥

 

THE MEANING OF THIS GEETA SHLOK: ARJUNA, WHENEVER THE RELIGION IS DEFILED AND IT GROWS INTO UNRIGHTEOUSNESS, THEN I (SHRI KRISHNA) CREATE SELF FOR THE UPLIFTMENT OF RELIGION, THAT IS, INCARNATE.

 

 

(अध्याय चार, श्लोक 8)

परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्।

धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे॥

 

THE MEANING OF THIS GEETA SHLOK: FOR THE WELFARE OF GENTLE MEN AND FOR THE DESTRUCTION OF EVIL MEN AND FOR THE ESTABLISHMENT OF RELIGION, I (SHRI KRISHNA) HAVE BEEN BORN FROM AGES TO AGES.

 

(अध्याय तीन, श्लोक 21)

यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:।

स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥

THE MEANING OF THIS GEETA SHLOKA IS: THE SUPERIOR MAN WHO CONDUCTS, WHATEVER HE DOES, THE OTHER HUMAN BEINGS (ORDINARY HUMAN BEINGS) ALSO DO THE SAME BEHAVIOR, THE SAME THING. HE (THE SUPERIOR MAN) WHO PRESENTS THE PROOF OR EXAMPLE, ALL HUMAN COMMUNITIES START FOLLOWING HIM.

(अध्याय दो, श्लोक 23)

नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: ।

न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत ॥

 

THE MEANING OF THIS GEETA SHLOKA: NEITHER CAN THE SOUL CUT OFF ITS WEAPON, NOR CAN THE FIRE BURN IT. NEITHER WATER CAN SOAK IT, NOR AIR CAN DRY IT. (HERE LORD KRISHNA HAS SPOKEN OF THE SOUL AS BEING IMMORTAL AND ETERNAL.

 

(अध्याय दो, श्लोक 37)

हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम्, जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम्।

तस्मात् उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय:॥

 

THE MEANING OF THIS GEETA SHLOKA: IF YOU (ARJUNA) ATTAIN VIRAGATI IN BATTLE, THEN YOU WILL GET HEAVEN AND IF YOU ARE VICTORIOUS YOU WILL ENJOY THE HAPPINESS OF THE EARTH, SO GET UP, O KAUNTEYA (ARJUNA), AND MAKE WAR WITH DETERMINATION. (HERE LORD KRISHNA HAS DISCUSSED THE RESULT OF THE PRESENT KARMA, WHICH MEANS THAT THERE IS NOTHING BETTER THAN THE PRESENT KARMA.

 

(अध्याय चार, श्लोक 39)

श्रद्धावान्ल्लभते ज्ञानं तत्पर: संयतेन्द्रिय:।

ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥

 

THE MEANING OF THIS GEETA SHLOKA: A MAN OF REVERENCE, A MAN OF RESTRAINT ON HIS SENSES, BEING A RESOURCEFUL PERSON, ATTAINS ENLIGHTENMENT WITH HIS READINESS, THEN SOON AFTER ATTAINING ENLIGHTENMENT ONE ATTAINS SUPREME PEACE (BHAGAVATPRAUPARUPA SUPREME PEACE

(अध्याय दो, श्लोक 47)

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

THE MEANING OF THIS GEETA SHLOKA: YOU HAVE AUTHORITY OVER KARMA, BUT NEVER IN THE FRUITS OF KARMA, SO DO NOT DO KARMA FOR FRUITS NOR DO YOU HAVE ATTACHMENT TO WORK. (THIS IS ONE OF THE MOST IMPORTANT SHLOKAS OF SRIMADBHAVADGITA, WHICH IS THE BASIC FOUNDATION OF KARMAYOG PHILOSOPHY.

 

(अध्याय दो, श्लोक 62)

ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।

सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥

THE MEANING OF THIS GEETA SHLOKA: BY THINKING ABOUT SUBJECTS (OBJECTS), A PERSON BECOMES ENAMORED WITH THEM. THIS CREATES DESIRE OR DESIRE IN THEM AND ANGER ARISES DUE TO DISTURBANCE IN DESIRES. (HERE LORD KRISHNA HAS TOLD ABOUT THE ILL EFFECTS OF SENSUALITY.

 

(अध्याय दो, श्लोक 63)

क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:।

स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥

THE MEANING OF THIS GEETA SHLOKA: ANGER KILLS A MAN’S HEART, THAT IS, IT BECOMES FOOLISH, WHICH CONFUSES MEMORY. DUE TO MEMORY-ILLUSION, THE HUMAN INTELLECT IS DESTROYED AND WHEN THE INTELLECT IS DESTROYED, MAN HIMSELF DESTROYS HIS OWN.

 

(अध्याय अठारह, श्लोक 66)

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।

अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच:॥

 

THE MEANING OF THIS GEETA SHLOKA: ARJUNA, AFTER RENOUNCING ALL RELIGIONS, THAT IS, RENOUNCING EVERY SHELTER, COME TO MY REFUGE ONLY, I (SHRI KRISHNA) WILL LIBERATE YOU FROM ALL SINS, SO DO NOT GRIEVE.

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